अपामार्ग (Achyranthus-Aspera)

 अपामार्ग

(Achyranthus-Aspera)


लैटिन-Achyranthes Aspera          


अंग्रेजी-Pinckly Chat Flower 

सामान्य नाम-जटजीरा, आंधीझाड़ा, म्यूरक, किशाही, अपामार्ग, शिखरी, स्वरमंजरी 

लैटिन: Achyranthes Aspera (Apamarg)


Classification (Botanical)


Family (कुल) - Amarantacae


Genus (वंश) - Achyranthes


Species (जाति) - Aspera

अपामार्ग


अपामार्गस्तु शिखरीहवचः शल्यो मपूरकः ।। मर्कटीदुग्रहाचापिकिणिहीस्वरमं जरी।। अपामार्गः सरस्तीक्ष्णो दिपनस्तिक्तकः कटुन। पाचनो रोचनार्चिक फमे दो निलापहः ।। निरुति‌दु‌जोल्यार्शः कडूशुलोवरापचीः ।। (अ.नि)


अपामार्ग (Achyranthes Aspera)


प्राकृतिक स्थान व स्वरूपः- अपामार्ग का छोटा झाड़ होता है, यह विशेषकर बरसात में पैदा होता है। कहीं-कहीं यह बारह मास भी पाया जाता है। इसकी ऊँचाई एक से दो-तीन हाथ तक होती है। पत्ते लम्बाई लिए हुए कुछ गोल व नोकदार होते हैं। पत्तों के बीच से एक मंजरी निकलती है। उसमें सूक्ष्म और कांटेयुक्त वीज होते हैं। इसकी दो प्रकार की जातियाँ पायी जाती हैं। एक लाल व दूसरी सफेद । लाल अपामार्ग का इंटल लाल रंग होता है।


उपयोगी औषधीय अंगः पंचाग (मूल बीज, पत्र व पंचांग क्षार)


रासायनिक संघटनः इसमें चुना 15 प्रतिशत, लोहा 30 प्रति., क्षार 6 प्रति, सांवतीर 2 प्रति., गंधक 2 प्रति., अन्य क्षार 3 प्रतिशत पाया जाता है।


भैषज गुण व धर्मः दीपन, पांचन, रोचन, विष्टम्मी, दूर्जर, कृमिघ्न, रक्त शोधक, हृदय रक्तशोधक, रक्तवर्धक, वेदनास्थापन, लेखन प्रग्णशोधन, व्रणरोपन, विपष्त, मूत्रल, स्वेदजन, कटु  पौष्टिक इत्यादि।


उपयोगिताः- मस्तिष्क की पुरानी बीमारियों में इसकी जड़ को सुंघाने से फायदा होता है। प्रसव कराने के लिए इसकी जड़ का उपयोग किया जाता है। पथरी रोग में इसकी जड़ का उपयोग किया जाता है। खूनी बवासीर में इसका प्रयोग लाभकारी है। यह मलेरिया ज्वर, दन्तशूल, कण्डमाला, काम-शक्ति की कमी, विच्छू का जहर, रक्त प्रदर, उदर शूल, कान का बहना आदि रोगों में उपयोगी है। वायु गोला एवं यकृत वृद्धि में लाभकारी है।


पथरीः-अपामार्ग की 6 माझे ताजी जड़ को पानी में पोटकर पिलाने से पथरी रोग में बड़ा लाभ पहुँचता है। यह औषधि वृक्क की पथरी को टुकड़े-टुकड़े करके निकाल देती है, वृक्कशूल के लिए भी यह महौषधि है।


नासूरः- इसके पत्तों का रसं नासूर के ऊपर लगाने से नासूर भर जाता है। रति-शक्ति की कमज़ोरीः- इसकी जड़ का चूर्ण छः माशे से लेकर उसमें दो रत्ती बंग-मस्म मिलाकर खाने से प्रबल कामोद्दीपन होता है।


जलोदरः- जलोदर रोग में इस औषधि का उपयोग काफी लाभप्रद होता है।


मात्राः- रोगानुसार 1 से 4 माशा चूर्ण का सेवन करें।


द्रव्य प्रयोगः-अपामार्ग क्षार, तेल, भस्म, अवलेह, आसय, अमृताख्य तेल इत्यादि

 

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